JHANKAR 24 24 || FEARLESS AGRO
सरसों की फसल के बारे में जानकारी
सरसों की खेती मुख्यतया राजस्थान, हरयाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल एवं असम गुजरात में की जाती है। सरसों की खेती किसानों के लिए बहुत लोकप्रिय होती जा
रही है क्योंकि सरसों की खेती में कम सिंचाई व लागत से अन्य फसलों की अपेक्षा अधिक
लाभ होता है। सरसों की खेती मिश्रित फसल के रूप में या दो फसलीय चक्र में की जा
सकती है। सरसों की कम उत्पादकता के मुख्य कारण उपयुक्त किस्मों का चयन असंतुलित
उर्वरक प्रयोग और पादप रोग व कीटों की पर्याप्त रोकथाम न करना हैं।
खेत का चुनाव
सरसों की अच्छी उपज के लिए समतल व अच्छे जल
निकास वाली दोमट मिट्टी उपयुक्त रहती है, लेकिन यह लवणीय व क्षारीयता से मुक्त हो। क्षारीय जमीन से उपयुक्त किस्मों का चुनाव करके भी सरसों
की खेती की जा सकती है। जहाँ की मिट्टी क्षारीय हो वहां हर तीसरे साल जिप्सम 100 किलोग्राम प्रति
एकड़ में उपयोग करना चाहिए। जिप्सम को मई-जून में खेत में डाल देना चाहिए। आखरी
जुताई के समय 1.5 प्रतिशत क्यूनॉलफॉस 8-10 किलो ग्राम प्रति एकड़ में डाल दें, ताकि
भूमिगत कीड़ों से फसल की सुरक्षा हो सके।
सरसों की बिजाई
सरसों के बीज की मात्रा, बीज ओपचार व बुआई में लेट होने के कारण उपज और तेल की मात्रा में कमी आती है। सरसों की बुआई का उचित टाइम सितम्बर 20 से 15 ओक्टुबर तक है। बीज की मात्रा प्रति एकड़ 1 किलो पर्याप्त होती है। सरसों की बुआई से पहले बीज को उपचारित करना चाहिए। बीज ओपचार के लिए कार्बेण्डाजिम (बॉविस्टीन) 2 ग्राम या एप्रोन (एस.डी. 35) 6 ग्राम कवकनाशक दवाई 1 किलो बीज को ओपचार करने से सरसों की फसल में लगने वाले रोगों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
हमसे जुड़े रहने के लिए हमें फ़ॉलो करे :-
Comments
Post a Comment